हमारे मुसलमानों की एक बद बख्ती और बद किस्मती यह है कि जिस तरह मुसलमान तमाम रसूलों पर ईमान रखते हैं लेकिन अमल अपने रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की लाई और बताई हुई शरीयत पर करते हैं, इसी तरह ......मुसलमानों का हाल यह है कि ईमान तो जरूर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर रखते हैं लेकिन अपने इमाम की बनाई हुई शरीयत पर करते हैं׀ और अपने आपको उन्हीं इमामों की तरफ मन्सूब करते हैं׀ नाम के लिए जरूर अपने आपको मुसलमान कहते हैं, लेकिन क्या इन्हें सही मुसलमान कहा जा सकता है? हमारी समझ में तो ऐसा नहीं आता׀
हजरत उमर.फारूक रजिअल्लाहो अन्हु ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम एक फैसले और .फरमान को न मानने वाले की गर्दन उडादी थी और उसको मुरतद व मुनाफिक.करार दिया था׀ अब जो लोग मोहतरम व मुकर्रम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के सैंकडों फरामीन व फैसलों को न मानें׀ उनको आखिर मुनाफिक और मुरतद क्यों नहीं करार दिया जा सकता? एक तरफ बिदअती बरेल्बियों ने अहमद रजा खान बरेल्बी को अपना बुत बना लिया है तो दूसरी तरफ देवबन्दियों ने उलेमाए देवबन्द को अपना बुत बना लिया है׀ कादनियों ने मिर्जा गुलाम अहमद कादयानी को तबलीगी जमात ने मौलाना जकरिया व इलयास ग्रुप को׀ जमात इस्लामी ने मौलाना मोदूदी को अहले कुरआन ने अब्दुल्लाह चकडाल्वी और पता नहीं किस किस को׀ (इन्होंने अल्लाह के सिवा अपने धर्मज्ञाताओं और संसार त्यागी सन्तों को ‘रब’ बना लिया और मसीह सुत मरयम को भी׀ हालांकि इन्हें इसके वसवा और कोई आदेश नहीं दिया गया था कि अकेले इलाह (पूज्य) के सिवा और किसी की ‘इबादत’ (बन्दगी) न करें׀ उसके सिवा और कोई इलाह नहीं (तर्जुमा9.31)׀
गर्ज कि आज हिन्दोस्तान में हर तरफ जो दीने इस्लाम नजर आता है और मुसलमानाने हिन्दोस्तान जिस इस्लाम पर अमल पैरा हैं वह लगभग 75 प्रतशित जाली और डुप्लीकेट दीन है׀
आइये इसके चन्द नमूने देखें...
कब्रों पर चिरागां
1. रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कब्रों की जियारत करने वाली औरतों पर लानत फरमाई और कब्रों पर मसजिद बनाने वालों पर लानत की और कब्रों पर चिराग जलाने वालों पर लानत की׀(हदीस(अबू दाउद तिर्मिजी निसाई)
नमाज जनाजा में सूरह फातिहा न पढना
2. बर्गर सूरह फातिहा के कोई नमाज नहीं (हदीस बुखारी व मुसलिम)
फज्र की सुन्नते बरबाद
3. जब नमाज (की जमात)खडी हो जाये सिवाय फर्ज नमाज के कोई नमाज (पास) नहीं होती (हदीस सहीह मुसलिम)
कुत्ते के नापाक बर्तन का मसला
4. जब कुत्ता तुम्हारे बर्तन में से पी जाय तो उसे सात मर्तबा धोओ (हदीस सहीह बुखारी व मुसलिम)
फिक्ह यानी जाली इस्लाम
कुत्ते के झूठे बर्तन को तीन दफा धोया जाय(हिदाया किताबुत्तहारा)
कुत्ते की खरीद फरोख्त का मसला
5. रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कुत्ते की कीमत से और जानिया की उजरत जिना से और काहिन के हलवे मांडे से मना फरमाया है׀ (सहीह बुखारी व मुसलिम)
फिक्ह यानी जाली इस्लाम
कुत्ते की भेडिये की खरीद व फरोख्त जायज है׀ (हिदाया किताबुल बुयू)
मैयत की तरफ से रोजे रखने का मसला
6. रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं कि जो शख्स मर जाय उसकी तरफ से उसके वली रोजे रख लें׀ (सहीह बुखारी व मुसलिम)
फिक्ह यानी जाली इस्लाम
मैयत की तरफ से उसका वली रोजे न रखे׀ (हिदाया किताबुस्सोम)
जुमे के खुतबे के वक्त की नमाज का मसला
7.रसूल0 ने खुतबा पढाते हुए फरमाया जब तुम में से कोई जमा के दिन इमाम के खुतबा पढने की हालत में आये तो वह दो रकाते पढ ले और जरा हल्की पढे (असली इस्लाम यानी सहीह मुसलिम, मिश्कात)
फिक्ह यानी जाली इस्लाम का फसला
जुमे के दिन इमाम के निकलते ही लोगों को न कोई नमाज पढनी चाहिये और न कोई बात करनी चाहिये (हिदाया किताबुस्सलात बाबुल जुमा)
इकहरी तकबीर का मसला
8. इकहरी तकबीर के लिए बुखारी व मुसलिम की हदीस है.सिवाय कदका मतिस्सलाह के लेकिन फिक्ह यानी जाली इस्लाम में है तकबीर भी अजान की तरह यानी दोहरी कहे׀ (हिदाया बाबुल अजान)
नमाज ईद से पहले कुरबानी का मसला
9. रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने नमाज ईद से फारिग होते ही कुरबानी का गोश्त देखा जो नमाज की फरागत से पहले ही कुर्बान कर दी गई थीं तो आपने फरमाया जिसने नमाज से पहले कुरबानी की हो उसे उसकी जगह और कुरबानी करनी चाहिए׀ (सहीह बुखारी व सहीह मुसलिम)
फिक्ह यानी जाली इस्लाम
शहर के इर्द गिर्द रहने वाले देहाती तो बाद फज्र कुरबानी कर लें׀ (हिदाया किताबुल उजहिया)
रूपान्तरण- असली इस्लाम क्या है और जाली इस्लाम क्या है׀ (उर्दू- लेखक अबूल इकबाल सलफी, इदारा दावतुल इस्लाम, मुम्बई से माखूज)