शिर्क - सबसे महान जुर्म व गुनाह है, हजरत अबू बक्र रजिअल्लाहो अन्हु से मर्वी है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने तीन मर्तबा फ़रमायाः क्या मैं तुम्हें सबसे बड़ा गुनाह न बताऊं. लोगों ने कहा- जरूर ए अल्लाह के रसूल, आपने फ़रमाया अल्लाह के साथ शिर्क करना। (हदीस बुखारी व मुसलिम)
अल्लाह रब्बुल आलमीन हर गुनाह को माफ़ कर सकता है लेकिन शिर्क की मगफ़िरत के लिए तौबा जरूरी है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया -
‘‘अल्लाह तआला शिर्क बिल्कुल न बख्शेगा इसके अलावा दीगर गुनाह जिसके चाहे माफ़ कर देता है।’’( कुरआन-सूरह निसाः116)
शिर्क का अनुगामी इस्लाम से खारिज और अगर इसी पर मौत आ जाये तो हमेशा के लिए जहन्न्मी हो जाता है, शिर्क के चन्द नमूने जो मुसलिम मुल्कों में कसरत से पाये जाते हैं निम्नांकित पंक्तियों में वर्णित हैंः-
1- क़ब्र परस्ती और पीरों फ़की़रों को को पुकारना इसके अक़ीदे के साथ कि वह हाजतें (जरूरतें) पूरी करते हैं, जबकि अल्लाह तआला ने फ़रमाया कि ‘‘ और तेरे रब ने फ़ैसला किया है कि तुम उसके सिवा किसी की इबादत हरगिज़ न करो। (कुरआन-सूरह इसराः23) इसी तरह अंबिया व सालिहीन को शफा़अत और परेशानी से निजात के लिए पुकारना यह सब शिर्क में दाखिल है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया‘‘ कौन बे-कस की पुकार सुनता है और परेशानी दूर करता है और तुम्हें ज़मीन का खलीफ़ा बनाता है, क्या अल्लाह के सिवा कोई और माबूद (पूज्य) है? (कुरआन-सूरह नमलः62)
कुछ मुसलमानों का हाल यह है कि उठते-बैठते, सोते-जागते और मुसीबत व परेशानी में हमेशा किसी वली या बुजु़र्ग का नाम लेते हैं, कोई या अली मुश्किल कुशा, तो कोई या हुसैन, कोई या ख्वाजा बगैरह को पुकारता है, जबकि जबकि अल्लाह तआला ने फ़रमाया तुम अल्लाह को छोड़ कर जिन्हें पुकारते हो वह भी तुम्हारे जैसे बन्दे हैं। ( कुरआन-सूरह ऐराफ़ः196)
और कुछ लोग क़ब्रों का तवाफ़ (परिक्रमा) करते हैं, इसकी चोखट चूमते हैं, छूकर जिस्म पर मलते हैं, उसको सजदा करते हैं और उसके सामने सिर झुकाकर बड़े ही अदब और अहतराम के साथ खड़े होकर फ़रियाद करते हैं, मरीज़ की शिफ़ायाबी और औलाद तलब करते हैं, यह सब शिर्क हैं। अल्लाह तआला फ़रमाता है ‘‘ और उससे बढ़कर कौन गुमराह होगा? जो अल्लाह के सिवा ऐसे लोगों को पुकारता हे जो क़यामत तक उसकी दुका कुबूल नहीं कर सकते,बल्कि वह उनकी दुआ से बेखबर हैं।’’ ( कुरआन-सूरह अहकाफः5)
और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लमस का इर्शाद है ‘‘ जिसकी मौत शिर्क की हालत में हुई वह जहन्नम में दाखिल होगा। (हदीस बुखारी)
कुछ लोग क़ब्रों पर जाकर अपना सिर मुंडाते हैं और यह विश्वास रखते हैं कि यह क़ब्र वाले पीर-फ़की़र क़ायनात (सृष्टि) में तब्दीली करते हैं और फ़ायदा व नुक़सान के मालिक है, अल्लाह तआला फ़रमाता है कि- ''और तुमको अल्लाह कोई तकलीफ़ पहुंचाए तो उसके सिवा कोई दूर करने वाला नहीं है और अगर वह तुम्हें कोई खै़र (भलाई) पहुंचाना चाहे तो उसके फ़जल को कोई रोकने वाला नहीं है।( कुरआन-सूरह यूनुसः107)
वह चीजें जिनमें फ़ायदे का विश्वास रखा जाये शिर्क-ए-असगर है, लेकिन अगर यह विश्वास हो कि वह फ़ायदा व नुक़सान की मालिक हैं तो शिर्क-ए-अकबर( बड़ा शिर्क) हो जाता है। जैसे बहुत सारे लोग तावीज़ गन्डों, कड़ों और छल्लों को अपनी गर्दनों हाथों या गाड़ियों पर लटकाते हैं या बच्चों को पहनाते हैं, जबकि कुछ मुखतलिफ़ नगीनों की अंगूठियां पहनते हैं, जिनसे नज़रे बद या आफ़त व मुसीबत टालने का मक़सद होता है, कुछ माऐं अपने बच्चों को नज़रे बद से हिफ़ाजत की खातिर उनकी पेशानियों की एक ओर काजल लगाती हैं यह सारे काम नाजायज और हराम हैं, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ‘‘ जिसने तावीज़ लटकाया उसने शिर्क किया। (हदीस मुसनद अहमद)