रविवार, 1 अप्रैल 2012

समाज में फैली हुई बुराइयों का तदारूक




किसी समाज में नौजवान लड़के और लड़कियों का वजूद निहायत अहमियत का हामिल है. लेकिन यह हक़ीक़त है कि चमक दमक और टी0वी0 की इन्किलाब आफ़रीं तहज़ीब हमारे घरों के अन्‍दर दाखिल हो चुकी है. बहुत थोड़े से घर हैं जहां या तो सिरे से टी0वी0 है ही नहीं या फिर सिर्फ ख़बरों और मालूमाती प्रोग्रामों तक सीमित है.
असल मसअला तो उन घरों का है जहां इस्‍लाम की शरई हुदूद को तोड़ कर नौजवान मनमानी करने पर आमादा नज़र आते हैं. इस्‍लाम में कहीं भी ऐसे सख्‍त उसूल नहीं बनाये गये हैं, जिन पर चलना इन्‍सानी फि़तरत के मुताबिक़ नहीं हो. लिबास के लिए सतर पोशी का लफ़्ज इस्‍तेमाज किया गया और इन्‍सानी जिस्‍म की सतर पोशी मुकर्रर की गई. ख्‍वातीन के लिए उनकी जिस्‍म की साख्‍त (बनावट) के मुताबिक़ और मर्दों के लिए उनके जिस्‍म की साख्‍त के मुताबिक़. यह कहीं नहीं कहा गया कि फ़ला लिबास पहनों फ़लां मत पहनों मगर कुछ ज़रूरी शराइत के साथ. मौजूदा दौर में जिंसी हादसात की एक बड़ी वजह तंग लिबास भी बन रहा है, जो लड़की अपनी मर्जी से ऐसा लिबास पहनती है जिसको देखकर ही मर्दों के जज़बात मुश्‍तइल (भड़क) हो जाते हो इसका मतलब है वह लड़की दीनदारी के खिलाफ़ ऐलाने जंग करती ही और जो ऐसा ऐलाने जंग करती है उसको अपनी शर्म व हया सरे बाज़ार नीलाम करना पड़ती है, कभी ज़बरदस्‍ती और कभी रज़ामन्‍दी से. जो मां बाप अपनी औलाद को इसकी इजाज़त देते हैं वही पहले दिन से इसके लिए जि़म्‍मेदार होते हैं. बात यह है कि पहली मर्तबा की गलती अगर सज़ा के बगैर कबूल कर ली जाय तो गलती करने वाला उसको गलती नहीं समझता और फिर वह उस गलती को करता ही चला जाता है. गौया गलती सिर्फ पहली बार में ही सर्जद होती है. इस गलती को घर से बाहर समाज और खानदान में बराबर सख्‍त तरीन नज़रों से देखा जाय और इसका तदारूक (राकेने हेतु पूर्वोपाय) किया जाय तो कोई वजह नहीं कि अपनी घर की हिफ़ाज़त अखलाक़े बद (दुश्‍चरित्रता) और गिरी हुई हरकतों से करना जरूरी है.अगर हमने इसमें कोई कोताही बरती तो इसके दुनिया भर में भी बद तरीन नतीजे  ज़ाहिर होंगे और रोज़े आखिरत भी इसका हिसाब हमें देना होगा. किसी गलत बात को अपने घर अपने खानदान अपने समाज में होते हुए देख कर जब आप खामोश रहते हैं तो इस खामोशी के लिए शैतान आपको आमादा करता है ताकि सुधार की राहें मसदूद (बन्‍द) हो जायें. पहले लोग बुराई को रोकने के लिए अमली इक़दामात  करते थे अब तो नज़र फैर कर गुज़र जाते हैं. याद रहे आज हगर आपने मेरे घर को नज़र अन्‍दाज़ कर दिया तो कल यह तूफ़ान आपके घर में भी घुस सकता है.
सोचिए समाज में फैली हुई बुराइयों का तदारूक (रोकने हेतु पूर्वोपाय) करना आपकी जि़म्‍मेदारी है या शैतान की ईमां (संकेत) पर ख़ामोशी........ ?