बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
मेरे दीनी भाई-बहनो ! अस्सलामो अ़लैकुम व रहमतुल्लाह व बरकातहू,
मुझे इस्लाम से बहुत प्यार था और मैं जब मुसलमानों को देखती तो उन्हें बहुत सही और उनका मज़हब बहुत सच्चा समझती थी׀ लिहाजा़, अल्लाह के फ़ज़ल व करम से मैंने आज से तक़रीबन 15 साल पहले इस्लाम को कुबूल कर लिया׀ जिसकी वजह से मेरे मां-बाप, भाई-बहन सारे रिश्तेदार अब सिर्फ नाम के ही रिश्तेदार रह गये है यानि सब मुझसे छूट गये׀ सोचा था कि मुसलमान बनने पर सभी मुसलमान मुझे बहुत चाहेंगे और मेरे इस क़दम का स्वागत करेंगे पर जब मैंने इस्लाम कुबूल किया तो मुझे वहां उल्टी ही गंगा बहती मिली׀ दीन की सही बातें समझने के बाद जब मैंने उन्हें समझना चाहा तो मुझे ही उन्होंने गुमराह-दोज़खी़, वहाबी और न जाने किन-किन अल्का़ब (सम्बोधन) से नवाज़ना शुरू किया, क्योंकि जो बुत परस्ती मैं छोड़कर आयी वही सब कुछ मैंने थोड़े से बदले हुए नामों के साथ मुसलमानों को क़ब्रों के साथ करते हुए देखा, तो मेरे दिल में आया कि ये सब तो मैं अपने पुराने धर्म में भी कर रही थी तब मुझे इस्लाम कुबूल करने की ही क्या ज़रूरत थी? लेकिन जब इस्लाम की मूल शिक्षाओं को गौ़र से समझा तब मालूम हुआ कि आज के आ़म मुसलमान तो अपने ही धर्म की मूल शिक्षाओं से बहुत ही दूर हैं और इनके धार्मिक विद्वान (उलमा व मौलवी) भी इन्हें उन मूल शिक्षाओं से बहुत ही दूर रखे हुए हैं और धर्म की आड़ में अपनी रोजी़-रोटी चला रहे हैं׀ कुरआन में भी है- ‘’बहुत से आ़लिम व दरवेश लोगों का माल नायज़ तरीके़ से खाते है और अल्लाह के रास्ते से रोकते हैं׀’’ (सूरह तौबा-34)
इस्लाम की मूल शिक्षाओं का स्रोत सिर्फ और सिर्फ कुरआन व हदीस है लेकिन आजके नाम-निहाद (तथाकथित) और पेट के पुजारी मौलवियों ने ये भ्रामक प्रचार कर रक्खा है कि आ़म मुसलमान कुरआन व हदीस को नहीं समझ सकता, क्योंकि ये बहुत कठिन है׀ जबकि अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है कि- ‘’हमने इसे आसान बनाया है समझने के लिये, तो है कोई समझने वाला?’’ (सूरह क़मर-17)
जब मैं सिर्फ कक्षा 4 तक की पढ़ी हुई और मैंने पूरे कुरआन के हिन्दी अनुवाद को पढ़ा तो मेरी समझ में वो आ गया , फिर ये मौलवी ना जाने कैसे ये कहता है कि कुरआन बहुत सख्त है और तुम नहीं समझ सकते (नउज़बिल्लाह)׀
जब मैंने इस्लाम की मूल शिक्षाओं को समझा तब मुझे पता चला कि मैंने कितनी बड़ी कामयाबी की राह को पा लिया है और अल्लाह तआ़ला के फ़ज़ल व करम से कितनी बड़ी गुमराही से बच गयी׀
मैं आप सभी मुसलमान भाईयों की खि़दमत में किसी की लिखी ये पंक्तियां पेश कर रही हूं, जिन्हें पढ़ कर आप को शायद थोड़ी ना-गवारी तो ज़रूर लगेगी लेकिन जब आप ठण्डे दिमाग़ से सोचेंगे और कुरआन व हदीस की मूल शिक्षाओं से मिलायेंगे तो आपको इन्शाअल्लाह इन पंक्तियों के एक-एक शब्द बिल्कुल सच व सही लगेंगे׀ हो सकता है कि आप मेरे विचार और ख्यालात से मुत्तफि़क़ (सहमत) न हों लेकिन मैं अपने अनुभव और अपने विचारों को फिर भी पेश कर रही हूं कि शायद आप इस पर गौ़र करें और अपनी इस्लाह करें׀
‘’शायद कि उतर जाये सीनों में मेरी बात’’
गै़र मुसलिम का, मुसलिम से खि़ताब
एक ही प्रभु की पूजा हम अगर करते नहीं,
एक ही रब के सामने, सर आप भी रखते नहीं׀ ׀
अपना सजदागाह देवी का अगर स्थान है׀
आपके सजदों का मरकज भी तो क़ब्रस्तान है׀ ׀
अपने देवी-देवताओं की गिनती , हम अगर रखते नहीं׀
आप भी तो मुश्किल कुशाओं को, गिन सकते नहीं׀ ׀
जितने कंकर उतने शंकर ये अगर मशहूर है׀
जितने मुर्दे उतने सजदे, आपका दस्तूर है׀ ׀
अपने देवी-देवताओं को है अगर कुछ अख्तयार׀
आपके वलियों की ताक़त का नहीं है कुछ शुमार׀ ׀
वक्त मुश्किल का है नारा अपना तो, जब बजरंग वली׀
आपको भी देखा लगाते नारा, अल मदद या अली׀ ׀
लेता है अवतार प्रभु अपना, तो हर देश में׀
आपने समझा अल्लाह को मुस्तफ़ा के भेष में׀ ׀
जिस तरह से हम बाजाते, मंदिरों में घंटियां׀
तुरबतों पर आपको , देखा बजाते तालियां׀ ׀
हम भजन करते हैं गाकर, देवता की खूबियां׀
आप भी क़ब्रों पर गाते , झूम कर क़व्वालियां׀ ׀
हम चढाते हैं बुतों पर, दूध और पानी की धार׀
आपको देखा चढाते, सुर्ख़ चादर शानदार׀ ׀
बुत की पूजा हम करें, हमकों मिले नार-ए-सकर׀
आप कब्रों पर झुकें, क्यूंकर मिले जन्नत में घर?
आप भी मुशरिक- हम भी मुशरिक, मामला जब साफ़ है׀
जन्नती तुम दोज़ख़ी हम, ये भी कोई इन्साफ़ हे?
हम भी जन्नत में रहेंगे, तुम अगर हो जन्नती׀
वर्ना दोज़ख़ में रहेंगे, आप हमारे साथ ही׀ ׀
हम भी छोड़ें-तुम भी छोड़ो, हैं ग़लत जो रास्ते׀
एक ही माबूद को पूजें, आओ- अल्लाह के वास्ते׀ ׀
अन्त में आप सभी मुसलिम भाईयों से आह्वान करती हूं (हालांकि ये काम आपको खुद ही करना चाहिए था) कि आप लोग कुरआन व हदीस की तालीमात (शिक्षाओं)को खुद पढ़ें, खुद समझें तो इन्शाअल्लाह इस्लाम की सही तस्वीर आप खुद ही जान जायेंगे׀ आपसे मैं सिर्फ इतना ही कहूंगी कि आप सभी दीनी भाई-बहनें कम से कम एक बार पूरे कुरआन मजीद को तर्जुमे के साथ पढ़ डालें, फिर देखें कि क्या आपको कुरआन समझ में नहीं आता है? और ये देखिये कि आज जो कुछ आप तीज-त्यौहार के नाम पर सवाब पाने की नियत से कर रहे हैं क्या वो सब ठीक है? जिसे आज आपने ऐन इस्लाम समझकर गै़रूल्लाह को अल्लाह का मुका़म देकर उस पर सवाब की नियत से जो कुछ भी दीन और मज़हब के नाम पर कर रहे हैं क्या वो सब जायज़ है? या ठीक है? करआन को गि़लाफ़ में रख कर सिर्फ ताक़ों की जी़नत मत बनाइये, बल्कि उसे पढि़ये, गौ़र करिये और अपनी जिन्दगी में उतारने की कोशिश करिये और वक्त़ की नमाजें मुक़र्ररा वक्त पर अदा करें, दीनी मां-बहने भी अपनी नमाजों की पाबन्दी करें और जुमा के दिन ज़रूर मसजिद में जाकर ख़ुत्बा सुने और जमाअ़त में शामिल हुआ करें׀ मसजिद में औरतें भी मुकम्मल पर्दे के साथ (उनका इन्तजा़म भी अलग रहना चाहिये) जाकर एक इमाम के पीछे नमाज़ अदा कर सकती हैं׀
पर अफ़सोस है कि इस भी आज नाम-निहाद जेब भरू पीर और पेट भरू मौलवियों ने नाजायज़ क़रार दे रखा है जबकि औरतों को बनावटी बैअ़त और मजा़रों की हाजि़री के लिये बेपर्दा करने में इन्हें कोई ऐब नज़र नहीं आता׀ ये सब शैतान कि़स्म के लोग हैं, ऐसे लोगों के बहकावे में मत आयें׀ अल्लाह के नबी ‘मुहम्मद’ (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) के वक्त में भी औरतें मसजिद में जाकर, अलग से खड़ी होकर नमाजें अदा किया करती थीं इसलिये ये जायज़ है और आज भी मसजिदों में इसका इन्तजा़म होना चाहिये׀ एक बात और जान लीजिये कि अल्लह के नबी (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने ईदैन (ईद-बक़रीद) की नमाजें औरतों को ईदगाह में जाकर अदा करने का ह़ुक्म दिया है इसलिये औरतों को ईदैन की नमाज़ मे शामिल होना वाजिब है, अगर हैज़ (मासिक धर्म) की हालत में हों तब भी जाना वाजिब है, हां उस हाल में नमाज़ नहीं पढ़ेंगी बल्कि अलग बैठेंगी और खुत्बा व दुआ बगैरह में शामिल रहेंगी, अगर एक औरत के पास पर्दे के लिये कपड़ा न हो तो दूसरी औरत अपने चादर में उसे भी ले ले, अगर आपको इन बातों पर यकी़न न हो तो इन हदीसों का खुद मुतालआ (अध्ययन) कर लें׀
1-बुखरी, हदीस नं0 981, 2- मुसलिम, हदीस नं0 890, 3- अबूदाउद, ह0नं0 1136, 4-तिर्मिजी़ ह0न0 537, 5-इब्ने माजा़ ह0नं0 1308, 6- नसई भाग3, 7-अहमद, भाग5, पेज84, 8-बैहकी़, भाग3 पेज305 ׀
आखि़र में अल्लाह तआ़ला से द़ुआ़ है कि वो मेरी इस छोटी सी कोशिश को कु़बूल फ़रमाए और हम सभी मुसलमानों को इस्लाम की सही तालीमात (शिक्षाओं) पर चलने वाला अपने नबी-ए-करीम (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) के बताये हुए तरीकों पर अ़मल करने वाला सच्चा-पक्का मोमिन बनाये और जन्नतुल फि़रदौस में हमें जगह अ़ता करे ׀ (आमीन) आप सभी अपनी इस नव मुसलिम बहन को अपनी नेक दुआ़ओं में ज़रूर याद रखियेगा, अगर कोई ग़लती हुई हो तो माफ़ करियेगा ׀
आपकी एक नव मुसलिम बहन जा़हिदा ‘मुहम्मदी’
(इस्लामिक रिसर्च सेन्टर, मिर्जापुर)