बुधवार, 23 मई 2012

कुरआन और हम


      अल्लाह तआला का कुरआन करीम में इरशाद है कि ‘‘यह (कुरआन) एक पैगा़म है, सारे इंसानों के लिए और इसलिए भेजा गया है ताकि इसके ज़रिये लोगों को आगाह (ख़बरदार) कर दिया जाय और वह जान लें कि बस अल्लाह एक है और जो सूझ-बूझ रखते हैं।’’ लकिन मुसलमानों का हाल बड़ा अजीब है। वह इस किताब यानी कुरआन को समझ कर पढ़ने की ज़रूरत ही नहीं समझते, बल्कि इस पर यकी़न करना और इसको सिर्फ़ पढ़ते रहना ही काफ़ी समझते हैं। इसका नतीजा़ यह है कि लोगों का कुरआन से ताल्लुक़ कमजो़र हो गया है। अल्लाह की किताब और नबी (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) के तरीके़ की जो अहमियत होनी चाहिए उसकी जगह कुछ मुअस्सिर शख्सियात और उनकी किताबों ने ले ली है। या फिर वे मनमानी करने के लिए आजा़द हो गये हैं। यह हालत ऐसी नहीं है कि हम इस पर ध्यान न दें बल्कि इसके असबाब का गहराई से पता लगाने और उन दिमागी़ रूकावटों को दूर करने की ज़रूरत है जो इस बाबत पाई जाती हैं।
 
बहुत से मुसलमान यह समझते हैं कि कुरआन सिर्फ़ आलिमों (विद्वानों) के समझने के लिए है। इस तरह का ख्याल न सिर्फ़ झूठ, बे-बुनियाद और कुरआन की रोशनी से दूर रखने के सबब से है, बल्कि उनको शख्यित परस्ती पर चलने वाला बनाता है। कौन नहीं जानता कि कुरआन करीम का आगा़ज़ (प्रारम्भ) लफ्ज़ इक़रासे हुआ है। इसका मतलब है पढ़, और पढ़ने से मक़सद कुरआन का पढ़ना है और इसमें समझ कर पढ़ने का मफ़हूम (अर्थ) भी शामिल है। क्योंकि कुरआन एक मक़सद के लिए भेजा गया है, इसको समझे बिना इससे फ़ायदा नहीं उठाया जा सकता है। कुरआन तो अपने उतरने का मक़सद यानी तुम समझो कि हक़ क्या है और बातिल क्या है……....                   अल्लाह तआला का इरशाद है कि-‘‘हमने इस कुरआन को आसान कर दिया है पस (फिर) क्या कोई है जो नसीहत हासिल करे।’’ इसलिए यह सोचना कि कुरआन को सिर्फ़ आलिम लोग ही समझ सकते हैं, बिल्कुल ग़लत है।
 
बड़े अफ़सोस की बात है कि कितने ही मुसलमान ऐसे हैं जो कुरआनी तालीमात व मका़सिद से गा़फ़िल हैं। कितने ही मुसलमान नाख्वान्दिगी (अशिक्षिक्षा) के कारण कुरआन को देखकर भी नहीं पढ़ सकते और जो लोग हिन्दी या उर्दू पढ़ते हैं उन्हें कुरआन को समझने के लिए उसका तर्जुमा (अनुवाद) तक पढ़ने की फ़ुरसत भी नहीं है। हम फ़िज़िक्स, कैमिस्ट्री, इंजीनियरिंग, एकाउंटिंग, क़िस्से-कहानियों बगैरह की किताबें पूरी दिलचस्पी से और समझते हुए पढ़ते हैं, लेकिन जहाँ अल्लाह तआला की किताब कुरआन करीम के पढ़ने-समझने की बात आती है तो हम सिर्फ़ उसे सरसरी तौर पर पढ़ते हैं या फिर रमज़ान में तौते की तरह बिना कुछ समझे पढ़ते चले जाते हैं। हम उसे समझ कर नहीं पढ़ते, जिसको पढ़-समझ कर अमल कर हम अपनी दुनिया व आखिरत दोनों को संवार सकते हैं। कुरआन करीम से बेरूखी का आलम यह है कि अव्वल तो उसे पढ़ते नहीं, पढें तो समझते नहीं, समझ लें तो अमल नहीं करते। अल्लाह तआला का कुरआन करीम में मुतअ़द्दद मका़मात (कई स्थानों) पर कुरआन करीम को समझकर गौ़र करने और नसीहत हासिल करने की बात दोहराई हैः

1-
यह किताब बिला शक (सही) है, अल्लाह से डरने वालों के लिए हिदायत है। (2:2)
2- यह बा-बरकत किताब हमने तेरी तरफ़ उतारी है कि लोग इसके अहकाम पर गौ़र फ़रमायें और अक्लमंद नसीहत पावें। (38:29)
3-
यह कुरआन पर गौ़र नहीं करते या उनके दिलों पर ताले लगे हुए हैं। (47:24)
4-
और हमने कुरआन को आसान किया है, फिर क्या कोई है नसीहत (हिदायत) पाने वाला? (54:17), इसी सूरह क़मर की आयत नम्बर 22, 32 और 40वीं आयत में भी यही दोहराया गया है, जिससे हम नतीजा़ हासिल कर सकें।
5-
हमने तुम्हारी तरफ़ एक किताब भेजी, जिसमें तुम्हारे लिए नसीहत है। क्या फिर भी तुम अक़्ल नहीं रखते। (21:10)
6-
और हमने कुरआन को तेरी ज़बान पर आसान किया है, ताकि तू इसके साथ नेकों (परहेज़गारों) को खुशखबरी दे और सख्त दुश्मनों को डरावे। (19:97)
7-
और हमने लोगों की हिदायत के लिए इस कुरआन में हर किस्म की मिसालें बतलाई हैं। (22:27)

हम में से जो लोग कुरआन को पढ़ते हैं या सुनते हैं तो वह लोग गौ़र करें कि कुरआन करीम में कई जगह पर ऐसे वाक़िआत या हिकायात दर्ज हैं, जो लोगों के लिए नसीहत से खाली नहीं हैं। कुरआन करीम में एक ऐसी तारीख़ भी पाई जाती है, जो हमारे लिए रोशन मुस्तक़बिल (भविष्य) के लिए रहनुमाई करती है। कमोबेश हर नोइयत (प्रकार) के शख्स और कौ़म का तज़किरा (वर्णन) है। इसलिए हमारे लिए जरूरी है कि हम इन वाक़िआत पर गौ़र व फ़िक्र करें कि इन मिसालों और वाक़िआत को ज़िक्र करने की मंशा-ए-इलाही क्या है?
कुरआन करीम में मिसालों और वाक़िआत के ज़रिये से यह पूरी तरह समझाया गया है कि लोग माज़ी (पिछले ज़माने) का मुतालआ (अध्ययन) कर अपने हाल को संवारें और अपनी इसलाह कर अच्छे मुस्तक़बिल के लिए पूरी तरह तैयार रहें।
अल्लाह तआ़ला से दुआ़ है कि हमें कुरआन को सही माअ़नों (अर्थों) में समझने और उस पर अमल करने की तौफ़ीक इनायत फ़रमाये। आमीन.

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