शनिवार, 26 मई 2012

वसीला

        अरबी जबान में वसीला का मतलब होता है कुर्बत, दर्जा, मर्तबा और किसी चीज को हासिल करने का जरिया।
        कुरआन में अहले ईमान को अल्लाह की तरफ़ वसीला ढूंढने का हुक्म दिया गया है और हदीसों से तीन तरीके साबित हैं जिन्हें सारी उम्मत तसलीम करती है।
1-एक यह कि अल्लाह के अस्माए हुस्ना (पवित्र नामों) और सिफात (विशेषताओं) को मकसूद का वसीला बनाया जाये।
 रसूल सल्‍लल्‍लाहो अलैहि वसल्‍लम यह दूआ कसरत से पढ़ा करते थे,(तर्जुमा) या हय्यो या कय्यूम मैं तेरी रहमत के वसीले से फरियाद करता हूं।(तिर्मिजी) इसमें अल्लाह तआला की सिफ्त रहमत को वसीला बनाया गया है।
2-दूसरा तरीका यह है कि इंसान अपने नेक आमाल को वसीला बनाए। मशहूर वाकिआ है कि बनी इसराईल के तीन आदमी एक गार में फंस गये थे तो उन्हों अपने नेक आमाल के वसीले से निजात की दुआ की और उनकी दुआ कुबूल हुई।
3-तीसरा तरीक़ा यह है कि किसी नेक और बुजुर्ग इंसान से दुआ की दरख्वास्त की जाए कि वह अल्लाह से हमारे लिये दुआ करें। इस दुआ की सूरत यह भी हो सकती है वह बुजुर्ग आदमी कहीं तन्हाई में दुआ करें और यह भी हो सकती है कि वह बहैसियत इमाम दुआ करें और हम पीछे से आमीन कहें ।

हज़रत उमर ने कहत साली क मौके पर हज़रत अब्बास को दुआ के लिए आगे बढ़ाया था और अल्लाह से उनकी दुआ की कुबूलियत के लिये दुआ की थी।बुखारी)

       सूरह मायदा में अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है- मुसलमानो! अल्लाह से डरते रहो और उसकी तरफ़ कुर्ब तलाश करो और अल्लाह की राह में कोशिश करो ताकि तुम्हारा भला हो।(5ः35) अल्लाह तआला ने फ़रमाया है वसीला तलाश करो। किस तरह? अल्लाह से कुर्ब हासिल करने का तरीका सिर्फ आमाल सालिहा हैं न कि आज कल मुसलामों में जो राइज है यानी कब्रों के माध्यम से। वसीले की और वजाहत के लिये हनफी अल्लामा की मशहूर किताब ‘‘रूहूल मआनी’’ में अल्लामा आलूसी फरमाते हैं:-वसीला नेकियों का करना और मुनकरात को छोड़ देना है, क्योंकि इस तरीके से अल्लाह की कुरबत मिल सकती है-- वसीले का जो मतलब हनफी अल्लामा ने लिखा है वह कब्र परस्तों में मुरव्वजा (प्रचलित) का उल्टा है।

       अजान के बाद जो दुआ पढ़ी जाती है उसमें लफ्ज ‘वसीला’ पर साहब ‘रूहुल मआनी’ ने मुसलिम की एक रवायत के हवाले से लिखा है कि ‘‘जो वसीला
रसूल सल्‍लल्‍लाहो अलैहि वसल्‍लम  के लिए मांगा जाता है वह जन्नत का एक बुलन्द मक़ाम है’’ बरेल्बी हजरात वसीला का जो मतलब लेते है वह हरगिज यहां सही नहीं हो सकता क्योंकि रसूल सल्‍लल्‍लाहो अलैहि वसल्‍लम का दर्जा और मकाम खुदा के बाद है अगर यहां वसीला से मुराद वफातशुदा बुजुर्ग हों और दुआ का मतलब यह हो कि उन बुजुर्गो का सहारा रसूल सल्‍लल्‍लाहो अलैहि वसल्‍लम को मिल जाय तो इससे बढ़कर इहानते (तोहीन) रसूल और क्या हो सकती है! 

    वसीले का और सही मफहूम जानने व समझने के लिए अरबी की मशहूर व मकबूल लुगत (ब्दकोष) ‘‘लिसानुल अरब’’ की भी सैर करें, क्योंकि कुरआन करीम अरबी जबान में नाजिल हुआ है और अल्लाह तआला का इरशाद है कि हमने इस (कुरआन) को अरबी में उतारा है ताकि तुम समझो।(सूरह यूसुफ़ 12ः2)
सूरह मोमिन की आयत नं0 60 व सूरह ब-क़-रः की आयत नं0186 को समझें जो इतनी स्पष्ट (साफ़) हैं कि इसमें न समझने की तो कोई बात नहीं है। बेशक
रसूल सल्‍लल्‍लाहो अलैहि वसल्‍लम  और दूसरे बुजुर्गाने दीन अल्लाह के क़रीब थे और हैं मगर क्या अल्लाह अपने बन्दों के क़रीब नहीं। सूरह काफ़ की इस आयत पर गौ़र करें जिसमें अल्लाह तआला फरमाता है ‘‘ हम इस (इन्सान) की रगे जान से ज्यादा उसके क़रीब हैं’’ तो जो इतने ज्यादा क़रीब हो तो फिर किसी माध्यम या वसीले की क्या जरूरत है। अगर आपकी समझ शरीफ़ में यह बात समझ न आई हो तो इस मिसाल से समझने की कोशिश  करें अल्लाह तआला समझने की कोशिश को कामयाब करे,आमीन। ‘‘ कोई खतीब या भाषण देने वाला लाउडस्पीकर का इस्तेमाल तभी करता है जब ज्यादा दूर तक लोगों को अपनी आबाज पहुंचाना हो अगर कोई शख्स उस खतीब के बिल्कुल करीब ही बैठा हो तो क्या उसे अपनी बात सुनाने के लिए लाउडस्पीकर की जरूरत है?
 इन सब बातों से यह साफ़ पता चलता है कि अल्लाह तआला से दुआ मांगते वक्त किसी के भी वसीले की ज़रूरत नही है क्योंकि अगर अल्लाह तआला यह चाहता कि उसका बन्दा दुआ के वक्त कोई तगड़ा,मज़बूत या कमजो़र वसीला लाए तो यकी़नन अल्लाह जरूर कुरआन करीम में इस बात के बार बारे में साफ़-साफ़ फ़रमा देता । जैसे-थ्रू प्रोपर चैनल
(through proper channel),  टू बी रूटेड थू्र ऐजेंसी शन थ्रू प्रोपर अथारिटी   (through proper authority), नो डायरेक्ट कम्यूनिके   (no direct communication), कांटेक्ट थ्रू एजेंट (contact through agent).

       दर असल बात तो यह है कि हम हकीकत को जानते हुए भी उसे समझ नहीं पाते हैं वर्ना अब तो इल्म व बहस व तहकी़क इतने आम हो चुके हैं कि हर शख्स हर मसअले की असलियत तक खुद पहुंच सकता है। आंधी तूफ़ान आने पर शुतुर मुर्ग की तरह अपनी मुंडिया रेत के अन्दर कर लेने से तूफान की हकीकत से मुंह नहीं मोड़ सकते। मुर्गों की लड़ाई देखने का शोक अब किसी समझदार शख्स को नहीं। (वमा अलेना इल्लल बलाग़)


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