शनिवार, 26 मई 2012

हुकूक़ुल इबाद (बन्दों के हक़)


  हुकूकुल इबाद की कुरआन व हदीस में बड़ी अहमियत बताई गई है, इसकी अहमियत बुखारी की इस हदीस से वाजेह(स्पष्ट)हो जाती है। ‘‘जिसने किसी की इज्ज़त का या कोई ओर हक़ देना है आज ही कराले, इससे पहले कि जब दीनार व दरहम न होंगे और उसके पास नेक अमल हैं तो वही बदले में लिये जागे और अगर नेकियां नहीं हैं तो हक़दार के गुनाह उस पर डाल दिये जायेंगे।’’ इसलिए यह निहायत जरूरी है कि हम हुकूकुल इबाद की अदायगी की पासदारी व लिहाज़ ज़रूर रखें। इसी सम्बन्ध में कुरआन व सही हदीस की रोशनी में संक्षेप में दर्ज जे़ल अहकाम बयान किये जाते हैं ।

मुसलमानों के हुकूक-


1. जब मिले तो गुफ़तुगू से पहले सलाम कहे और मुसाफह करे और जबाव दे।
2. बीमार हो जाये तो बीमार पुर्सी करे और शिफ़ा के लिए दुआ करे।
3. दूसरों के लिए वही पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता है और अपने लिए जो नापसंद करे दूसरों के लिए भी नापसंद करे।
4. हर मुसलमान पर दूसरे मुसलमान का खून, माल और इज्ज़त हराम है।
5. मुसलमान वह है जिसकी ज़बान और हाथ से दूसरे मुसलमान भी महफूज रहें।
6. और लोगों से मुंह न फैर और ज़मीन पर इतराता हुआ न चल, बेशक अल्लाह तकब्बुर और फ़ख्र करने वालों से मुहब्बत नहीं करता।
7. हर मुसलमान के मुसलमान पर पांच हुकूक हैं,(1)-सलाम का जवाब देना,  (2-बीमार की इयादत करना,
(3)-जनाजे़ के साथ चलना, (4)-दअवत कुबूल करना, (5-छींक का जवाब देना।
8. जो बन्दा दूसरों के ऐब पर दुनिया में पर्दा देता है, अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसके ऐबों पर पर्दा डाल देगा।)

वालिदेन के हुकूक-


1. और तेरे रब ने फैसला किया है कि इबादत सिर्फ उसी की करो और वालिदेन के साथ एहसान करो और एक या दोनों तेरे पास बुढ़ापे को पहुंच जायें तो उन्हें ‘उफ’ तक न कहो उन्हें न झिड़क और उनके साथ नरमी से बात कर और मुहब्बत से उनके लिए झुक जा और यह कह, ऐ रब! इन पर रहम कर जिस तरह इन्होनें बचपन में मेरी तरबीयत की है।
2. अल्लाह के रसूल(स0अ0व0़)ने फरमायाः बेशक अल्लाह ने माओं की नाफ़रमानी, कंजूसी और
  भीक, बेटियों   जिन्दा दरगोर करना हराम क़रार दिया है, और अफ़वाहें फैलाना, सवालात की
कसरत और माल बरबाद करने को नापसंद क़रार दिया है।
3. एक शख्स रसूल(स0अ0व0)के पास आया और जिहाद में शरीक होने की इजाज़त चाही, आपने पूछा तेरे वालिदेन ज़िन्दा है? उसने कहा, ‘हां’ आपने फ़रमाया उनकी खिदमत कर यही जिहाद ।
4. एक अंसारी मर्द आप(स0अ0व0)के पास आया और अर्ज किया, मेरे वालिदेन की मौत के बाद भी उनकी इताअत शआरी में से कोई चीज़ बाकी़ है। आपने फ़रमाया, हां चार बातें बाकी़ रहती हैंः-
1- उनके हक़ में रहम व करम और मगफ़िरत व बखशिश की दुआ करना,
2- उनके वादों को पूरा करना, 3- उनके दोस्तों की इज्ज़त करना, 4- उनकी बुनियाद पर रिश्तों को जोड़ना। वालिदेन की हर बात में फ़रमांबरदारी करे, अगर उससे अल्लाह और उसके रसूल(स0अ0व0) की नाफ़रमानी न होती हो, क्योंकि खालिक़ की नाफ़रमानी में किसी मख़लूक की इताअत नहीं है।
अल्लाह तआला ने फ़रमायाः अगर तेरे वालिदेन कोशिश करें कि तू मेरे साथ उसको शरीक बनाये जिसका तुझे इल्म नहीं तो उनका कहा न मान और दुनिया में अच्छे अन्दाज़ से उनके साथ निबाह कर।है

  रिश्तेदारों के हुकूक-

1. वालिदेन के साथ एहसान करो और रिश्तेदारों, यतीमों, मिस्कीनों और रिश्तेदार पड़ोसी और गै़र रिश्तेदार पड़ोसियों सबके हुकूक़ व आदाब की अदायगी करो। (कुरआन)
2. रसूल (स0अ0व0)ने फ़रमायाः जिब्राईल अलैहिस्सलाम मुझे हमसाया(पड़ोसी) के बारे में वसीयत करते रहे यहां तक कि मैंने गुमान किया कि उसे(पड़ोसी को) वारिस न बना दिया जाये।
3. जो अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता है वह अपने हमसाया को तकलीफ़ न दे।
आखिर में अल्लाह तआला से दुआ है कि हमें अपने हुकूक़ की बखूबी अदायगी के साथ-साथ दीनी समझ की तौफ़ीक अता फ़रमाए और सच्चा मुसलमान बनाये । आमीन ।

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